प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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तृन ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तृण] दे॰ 'तृण' । मुहा॰—तृन सा गिनना = कुछ न समझना । तृन ओट पहार छपाना = (१) असंभव कार्य के लिये प्रयत्न करना । (२) निष्फल चेष्टा करना । उ॰—मैं तृन सो गन्यो तीनहू लोकनि, तू तृन ओट पहार छपावै ।—मति॰ ग्रं॰, पृ॰ ४३४ । तृन तोड़ना = दे॰ 'तृण तोड़ना' । उ॰—झूलत में लोट पोट होत दोऊ रंग भरे निरखि छबि नंददास बलि बलि तृन तौरै ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ ३७७ ।

तृन पु ^२ वि॰ [हिं॰] दे॰ 'तीन' । उ॰—तृन अंश बृस्चिक के इला— नंद । ससि बीस नंद अज अंस मंद ।—ह॰ रासो, पृ॰ १४ ।

तृन जोक पु संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ तृन + जोक] तृणजलौका । दे॰ 'तृण— जलौकान्याय' । उ॰— ज्यौं तृन जोक तृनन अनुसरै । आगे गहि पाछे परिहरै ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ २२२ ।