तिरोभाव


तिरोभाव संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अंतर्धान । अदर्शन । मृत्यु ।
२. गोपन । छिपाव ।

तिरोभाव संस्कृत [संज्ञा पुल्लिंग] 1. मृत्यु होना।
2. तिरोहित या अदृश्य होने का भाव या अवस्था ; अंतर्धान ; लोप
3. छिपाव ; गोपन।

तिरोभाव- संज्ञा पुलिंग [संस्कृत]
1. मृत्यु होना ।
2. अंतर्धान । अदर्शन ।
3. गोपन । छिपाव
तिरोभाव' का विलोम शब्द 'आविर्भाव ' है। आविर्भाव' का अर्थ – प्रकट होना, उत्पत्ति है इसके विपरीत तिरोभाव का अर्थ है मृत्यु होना अदृश्य हो जाना, अदर्शन।

तिरोभाव का संधि विच्छेद

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तिर: + भाव, जिन व्यंजनों में परिवर्तन के कारण संधि है = विसर्ग + अ = ओ। तिरोभाव में व्यंजन संधि का प्रयोग हुआ है।

तिरोभाव का वाक्यः

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श्री देवी महापुराण के तीसरे स्कंद के अध्याय 4-5 पृष्ठ 138. इसमें श्री विष्णु जी स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि मेरा (विष्णु का) श्री ब्रह्मा का तथा श्री शिव का आविर्भाव यानि जन्म तथा तिरोभाव यानि मरण होता है।

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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तिरोभाव संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. अंतर्धान । अदर्शन ।

२. गोपन । छिपाव ।