प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ताल ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. हाथ का तल । करतल । हथेली ।

२. वह शब्द जो दोनों हथेलियों को एक दूसरी पर मारने से उत्पन्न होता है । करतलध्वनि । ताली । उ॰—हुलुक, चुटुकुल, प्रतिगीत, वाद्य, ताल, नृत्य, होइतेँ अछ ।—वर्ण- रत्नाकर, पृ॰२ ।

३. नाचने या गाने में उसके काल और क्रिया का परिमाण, जिसे बीच बीच में हाथ पर हाथ मारकर सूचित करते जाते हैं । उ॰—माँगणहाराँ सीख दी ढोलइ तिणहि ज ताल ।—ढोला॰, दू॰ २०९ । विशेष—संगीत के संस्कृत ग्रंथों में ताल दो प्रकार के माने गए हैं—मार्ग और देशी । भरत मुनि के मत से मार्ग ६० हैं— चंचत्पुट, चाचपुट, षट्पितापुत्रक, उदघट्टक, संनिपात, कंकण, कोकिलारव, राजकोलाहल, रंगविद्याधर, शचीप्रिय, पार्वतीलोचन, राजचूड़ामणि, जयश्री, वादकाकुल, कदर्प, नलकूबर, दर्पण, रतिलीन, मोक्षपति, श्रीरंग, सिंहविक्रम, दीपक, मल्लिकामोद, गजलील, चर्चरी, कुहक्क, विजयानंद, वीरविक्रम, टैंगिक, रंगाभरण, श्रीकीर्ति, वनमाली, चतुर्मुख, सिंहनंदन, नंदीश, चंद्रबिंब, द्वितीयक, जयमंगल, गंधर्व, मकरंद, त्रिभंगी, रतिताल, बसंत, जगझंप, गारुड़ि, कविशेखर, घोष, हरवल्लभ, भैरव, गतप्रत्यागत, मल्लताली, भैरव- मस्तक, सरस्वतीकंठाभरण, क्रीड़ा, निःसारु, मुक्तावली, रंग- राज, भरतानंद, आदितालक, संपर्केष्टक । इसी प्रकार १२० देशी ताल गिनाए गए हैं । इन तालों के नामों में भिन्न भिन्न ग्रंथों में विभिन्नता देखी जाती हैं । इन नामों में से आजकल बहुत प्रचालित हैं । संगीत में ताल देने के लिये तबले, मृर्दग ढोल और मँजीरे आदि का व्यवहार किया जाता है । क्रि॰ प्र॰—देना ।—बजाना । यौ॰—तालमेल । मुहा॰—ताल बेताल = (१) जिसका ताल ठिकाने से न हो । (२) अवसर या बिना अवसर के । मौके । बेमौके । ताल से बीताल होना = ताल के नियम से बाहर हो जाना । उखड़ जाना । (गाने बजाने में) ।

४. अपने जंघे या बाहु पर जोर से हथेली मारकर उत्पन्न किया हुआ शब्द । कुश्ती आदि लड़ने के लिये जब किसी को ललकारते हैं, तब इस प्रकार हाथ मारते हैं । मुहा॰—ताल ठोंकना = लड़ने के लिये ललकारना ।

५. मँजीरा या झाँझ नाम का बाज । उ॰—ताल भेरि मृदंग बाजत सिंधु गरजन जान ।—चंरण॰ बानी, पृ॰ १२२ ।

६. चश्मे के पत्थर या काँच का एक पल्ला ।

७. हरताल ।

८. तालीश पत्र ।

९. ताड़ का पेड़ या फल ।

१०. बेल । बिल्वफल (अनेकार्थ॰)

११. हाथियों के कान फटफटाने का शब्द ।

१२. लंबाई की एक माप । बित्ता ।

१३. ताला ।

१४. तलवार की मूठ ।

१५. एक नरक ।

१६. महादेव ।

१७. दुर्गा के सिंहासन का नाम ।

१८. पिंगल मे ढगण के दूसरे भेद का नाम जो एक गुरु और एक लघु का होता है— S ।

१९. ताड़ की ध्वजा (को॰) ।

२. ऊँचाई का एक परिमाण (को॰) ।

२१. एक नृत्य (को॰) ।

ताल ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तल्ल] वह नीचो भूमि या लंबा चौड़ा गड्ढा जिसमें बरसात का पानी जमा रहता है । जलाशय । पोखरा । तालाब । उ॰—कौन ताल और कौन द्वारा । कहँ होइ हंसा करै बिहारा । कबीर मं॰, पृ॰ ५५५ ।

ताल पु ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ तार] उपाय । दाँव । उ॰—वास बिकट निबला बसै सबल नं लागै ताल ।—बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ६९ ।

ताल पु ^४ संज्ञा पुं॰ [सं॰ ताल] क्षण । समय । उ॰—ढाढी गुणी बोलाविया, राजा तिणही ताल ।—ढोला॰, दू॰ १०५ ।

ताल ^५ वि॰ स्त्री॰ [सं॰ उत्ताल] ऊँची । उ॰—व्याकुल थीं निस्सीम सिंधु की ताल तरंगें ।—अनामिका, पृ॰ ५६ ।

ताल बैताल संज्ञा पुं॰ [सं॰ ताल + बैताल] दो देवता या यक्ष । विशेष—ऐसा प्रसिद्ध है कि राजा विक्रमादित्य ने इन्हें सिद्ध किया था और ये बराबर उनकी सेवा में रहते थे ।