प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ता ^१ प्रत्य॰ [सं॰] एक भाववाचक प्रत्यय जो विशेषण और संज्ञा शब्दों के आगे लगता है । जैसे,—उत्तम, उत्तमता; शत्रु, शत्रुता; मनुष्य, मनुष्यता ।

ता ^२ अव्य॰ [फा़॰] तक । पर्यत । उ॰—(क) केस मेधावरि सिर ता पाई । चमकहिं दसन बीजु की नाई ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) । रूठता हूँ इस सबब हर बार मैं । ता गले तेरे लगूँ ऐ यार मैं । कविता कौ॰, भाग ४, पृ॰ २९ ।

ता † पु ^३ सर्व॰ [सं॰ तद्] उस । विशेष—इस रूप में यह शब्द विभक्ति के साथ ही आता है । जैसे,—ताकों, तासों, तापै इत्यादि ।

ता पु † ^४ वि॰ उस । उ॰—तब शिव उमा गए ता ठौर ।—सूर (शब्द॰) । विशेष—इसका प्रयोग विभाक्तियुक्त विशेष्य के साथ ही होता है ।

ता ^५ क्रि॰ वि॰ [फ़ा॰] जब तक । उ॰—करे ता ओ अल्लाह का नायब करम । हमारा सभी जाय ये दर्दो गम ।—दक्खिनी॰, पृ॰ २१४ ।

ता ^६ संज्ञा पुं॰ [अनु॰] नृत्य का बोल । उ॰—रास में रसिक दोऊ आनँद भरि माचत, गताद्रिम द्रि ता ततथेइ ततथेइ गति बोले ।—नंद॰ ग्रं॰, पृ॰ ३६६ ।