तम
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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन
शब्दसागर सम्पादन
तम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तमः, तमस्]
१. अंधकार । अँधेरा ।
२. पैर का अलग भाग ।
३. तमाल वृक्ष ।
४. राहु ।
५. वराह । सुअर ।
६. पाप ।
७. क्रोध ।
८. अज्ञान ।
९. कालिख । कालिमा । श्यामता ।
१०. नरक ।
११. मोह ।
१२. सांख्य के अनुसार अविद्या ।
१३. सांख्य के अनुसार प्रकृति का तीसरा गुण जो भारी और रोकनेवाला माना गया है । विशेष—जब मनुष्य में इस गुण की अधिकता होती है, तब उसकी प्रवृत्ति, काम, क्रोध, हिंसा आदि नीच और बुरी बातों की ओर होने लगती है ।
तम ^२ वि॰
१. काला । दूषित । बुरा [को॰] ।
तम ^३ वि॰ [सं॰ तमय्] एक प्रकार का प्रत्यय, जो विशेषण शब्दों में लगने पर अतिशय या सबसे अधिक का अर्थ प्रकट करता है जैसे, क्रूरतम, कठिनतम ।
तम पु ^४ सर्व॰ [सं॰ त्वाम्, हिं॰ तुम, गुज॰ तम] दे॰ 'तुम' । उ॰—हाहुलि राय हमीर सलष पांमार जैत सम । कह्वौ राज हम मात तात अप्पी दिल्ली तम ।—पृ॰ रा॰, १८ ।६ ।