तनना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनतनना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ तन या तनु]
१. किसी पदार्थ के एक या दोनों सिरों का इस प्रकार आगे की ओर बढ़ना जिसमें उसके मध्य भाग का झोल निकल जाय और उसका विस्तार कुछ बढ़ जाय । झटके, खिंचाव या खुश्की आदि के कारण किसी पदार्थ का विस्तार बढ़ना । जैसे, चादर या चाँदनी तनना, घाव पर की पपड़ी तनना ।
२. किसी चीज का जोर से किस ी ओर खिंचना । आकर्षित या प्रवृत्त होना ।
३. किसी चीज का अकड़कर सीधा खड़ा होना । जैसे,—यह पेड़ कल झुक गया था, पर आज पानी पाते ही फिर तन गाया ।
४. कुछ अभिमान- पूर्वक रुष्ट या उदासीन होना । ऐंठना । जैसे,—इधर कई दिनों से वे हमसे कुछ तने रहते हैं । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
तनना ^२ क्रि॰ अ॰ [हिं॰] दे॰ 'तानना' । उ॰—ग्रहपथ के आलोक- वृत्त से कालजाल तनता अपना ।—कामायनी, पृ॰ ३४ ।
तनना ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ ताना] वह रस्सी जिससे तानने का कार्य किया जाता है ।