प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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तत्व संज्ञा पुं॰ [सं॰ तत्त्व]

१. वास्तविक स्थिति । ययार्थता । वास्तविकता । असलियत ।

२. जगत् का मूल कारण । विशेष—सांख्य में २५ तत्व माने गए हैं—पुरुष, प्रकृति, महत्तत्व (बुद्धि), अहंकार, चक्षु, कर्ण, नासिका, जिह्वा, त्वक्, वाक्, पाणि, पायु, पाद, उपस्थ, मल, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश । मूल प्रकृत्ति से शोष तत्वों की उत्पत्ति का क्रम इस प्रकार है—प्रकृति से महत्तत्व (बुद्धि), महत्तत्व से अहंकार, अहंकार से ग्यारह इंद्रियाँ (पाँच ज्ञानेंद्रियाँ, पाँच कर्मेंद्रियाँ और मन) और पाँच तन्मात्र, पाँच तन्मात्रों से पाँच महाभूत (पृथ्वी, जल, आदि) । प्रलय काल में ये सब तत्व फिर प्रकृति में क्रमश: विलीन हो जाते हैं । योग में ईश्वर को और मिलाकर कुल २६ तत्व माने गए हैं । सांख्य के पुरुष से योग के ईश्वर में विशेषता यह है कि योग का ईश्वर क्लेश, कर्मविपाक आदि से पृथक् माना गया है । वेदांतियोँ के मत से ब्रह्म ही एकमात्र परमार्थ तत्व है । शून्य— वादी बौद्धों के मत से शून्य या अभाव ही परम तत्व है, क्यों कि जो वस्तु है, वह पहले नहीं थी और आगे भी न रहेगी । कुछ जैन तो जीव और अजीव ये ही दो तत्व मानते हैं और कुछ पाँच तत्व मानते हैं—जीव, आकाश, धर्म, अधर्म, पुदगल और अस्तिकाय । चार्वाक् के मत में पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये ही तत्व माने गए हैं और इन्हीं से जगत् की उत्पत्ति कही गई है । न्याय में १६, वैशेषिक में ६, शैवदर्शन में ३६; इसी प्रकार अनेक दर्शनों की भिन्न भिन्न मान्यताएँ तत्व के संबंध में हैं । यूरोप में१६वीं शती में रसायन के क्षेत्र का विस्तार हुआ । पैरासेल्सस ने तीन या चार तत्व माने, जिनके मूलाधार लवण गंधक और पारद माने गए । १७वीं शती में फांस एवं इग्लैंड में भी इसी प्रकार के विचारों की प्रश्रय मिलता रहा । तत्व के संबंध में सबसे अधिक स्पष्ट विचार रावर्ट जायल (१६२७—१६९१ ई॰) ने १६६१ ई॰ में रखा । उसने परिभाषा की कि तत्व उन्हें कहेंगे जो किसी यांत्रिक या रासायनिक क्रिया से अपने से भिन्न दो पदार्थो में विभाजित न किए जा सकें । १७७४ ई॰ में प्रीस्टली ने आक्सिजन गैस तैयार की । कैबेंडिश ने १७८१ ई॰ में आक्सिजन और हाइड्रोजन के योग से पानी तैयार करके दिखा दिया और तब पानी तत्वं न रहकर यौगिकों की श्रेणी में आ गया । लाव्वाज्ये ने १७८९ ई॰ में यौगिक और तत्व के प्रमुख अंतरों को बताया । उसक े समय तक तत्वों की संख्या २३ तक ग्हुँच चुकी थी । १९वी॰ शती में सर हंफ्री डेवी ने नमक के मूल तत्व सोडियम को भी पृथक् किया और कैल्सियम तथा पोटासियम को भी यौगिकों में से अलग करके दिखा दीया । २०वीं शती में मोजली नामक वैज्ञानिक न परमाणु संख्या की कल्पना रखी जिससे स्पष्ट हो गया कि सबसे हल्के तत्व हाइड्रोजन से लेकर प्रकृति में प्राप्त सबसे भारी तत्व यूरेनियम तक तत्वों की संख्या लगभग १०० हो सकती है । प्रयोगों ने यह भी संभव करके दिखा दिया है कि हम अपनी प्रयोगशालाओं में तत्वों का विभाजन और नए तत्वों का निर्माण भी कर सकते हैं ।

३. पंचभूत (पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश) ।

४. परमात्मा । ब्रह्म ।

५. सार वस्तु । सारांश । जैसे,—उनके लेख में कुछ तत्व नहीं है । यौ॰—तत्त्वमसि = यह उपनिषद् का एक वाक्य है जिसका तात्पर्य है हर व्यक्ति ब्रह्म है ।