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संज्ञा

  1. तरीका, कोई कार्य करने की शैली

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

ढंग संज्ञा पुं॰ [सं॰ तङ्ग, तङ्ग ( = चाल, गति?)]

१. क्रिया । प्रणाली । शैली । ढब । रीति । तोर । तरीका । जैसे,—(क) वोलने चालने ता ढंग, बैठने उठने का ढंग । (ख) जिस ढंग से तुम काम करते हो वह बहुत अच्छा हैं ।

२. प्रकार । भाँति । तरह । किस्म ।

३. रचना । प्रकार । बनावट । गढ़न । ढाँचा । जैसे,—वह गिलास और ही ढंग का है ।

४. अभिप्रायसाधन का मार्ग । युक्ति । उपाय । तदबीर । डौल । जैसे,— कोई ढंग ऐसा निकालो जिसमें रुपया मिल जाय । क्रि॰ प्र॰—करना ।—निकालना ।—बताना । मुहा॰—ढ़ग पर चढ़ना = अभिप्रायसाधन के अनुकूल होना । किसी का इस प्रकार प्रवृत्त होना जिससे (दूसरे का) कुछ अर्थ सिद्ध हो । जैसे,—उससे भी कुछ रुपया लेना चाहता हूँ, पर वह ढंग पर नहीं चढ़ता है । ढंग पर लाना = अभिप्राय साधन के अनुकूल करना । किसी को इस प्रकार प्रवृत्त करना जिससे कुछ मतलब निकले । ढंग का = कार्यकुशल । व्यवहार- वक्ष । चतुर ।जैसे, —वह वडे़ ढंग का आदमी है ।

५. चाल ढाल । आचरण । व्यवहार । जैसे,— यह मार खाने का ढंग है । मुहा॰—ढंग बरतना = शिष्टाचार दिखाना । दिखाऊ ब्यवहार करना ।

६. धोखा देने की युक्ति । बहाना । हीला । पाखंड । जैसे,—यह तुम्हारा ढंग है । क्रि॰ प्र॰—रचना ।

७. ऐसी बात जिससे किसी होनेवाली बात का अनुमान हो । लक्षण । आसार । जैसे,—रंग ढंग अच्छा नहीं दिखाई देता ।

८. दशा । अवस्था । स्थिति । उ॰— नैनन को ढंग सों अनंग पिचकारिन ते, गातन को रंग पीरे पातन तें जानबी ।— पद्माकर (शब्द॰) ।