प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ठीकरा संज्ञा पुं॰ [देशी ठिक्करिआ] [स्त्री॰ अल्पा॰ ठीकरी]

१. मिट्टी के बरतन का फूटा टुकड़ा । खपरैल आदि का टुकड़ा । सिटकी । मुहा॰—(किसी के माथे या सिर पर) ठीकरा फोड़ना = दोष लगना । कलंक लगाना । (जैसे किसी वस्तु या रुपए आदि को) ठीकरा समझना = कुछ न समझना । कुछ भी मूल्यवान् न समझना । अपने किसी काम का न समझना । जैसे,— पराए माल को ठीकरा समझना चाहिए । (किसी वस्तु का) ठीकरा होना = अंधाधुंध खर्च होना । पानी की तरह बहाया जाना । ठीकरे की तरह बेमोल एवं तुच्छ होना ।

२. बहुत पुराना बरतन । टूटा फूटा बरतन ।

३. भौख माँगने का बरतन । भिक्षापात्र ।

४. सिक्का । रुपया (सधु॰) ।