प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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ठाकुर संज्ञा पुं॰ [सं॰ टक्कुर] [स्त्री॰ ठकुराइन, ठकुरानी]

१. देवता, विशेषकर विष्णु या विष्णु के अवतारों की प्रतिमा । देवमूर्ति । यौ॰—ठाकुरद्वारा । ठाकुरबाड़ी ।

२. ईश्वर । परमेश्वर । भगवान् ।

३. पूज्य व्यक्ति ।

४. किसी प्रदेश का अधिपति । नायक । सरदार । अधिष्ठाता । उ॰— सब कुँवरन फिर खैंचा हाथू । ठाकुर जेव तो जैंवै साथू ।— जायसी (शब्द॰) ।

५. जमींदार । गाँव का मालिक ।

६. क्षत्रियों की उपाधि ।

७. मालिक । स्वामी । उ॰—(क) ठाकुर ठक भए गेल चोरें चप्परि घर लिज्झअ ।—कीर्ति॰, पृ॰ १६ । (ख) निडर, नीच, निर्गुन, निर्धन कहँ जग दूसरो न ठाकुर ठाँव ।—तुलसी (शब्द॰) ।

८. नाइयों की उपाधि । नापित ।