टाट
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनटाट ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ तन्तु]
१. सन या पटुए की रस्सियों का बना हुआ मोटा खुरदुरा कपड़ा जो बिछाने, परदा डालने आदि के काम में आता है । मुहा॰—टाट में मूँज का बखिया = जैसी भद्दा । चीज, वैसी ही उसमें लगी हुई सामग्री या साज । टाट में पाट का बाखिया = चीज तो मद्दी और सस्ती, पर उसमें लगी हुई सामग्री बढ़िया ओर बहुमूल्य । बेमेल का साज ।
२. बिरादरी । कुल । जैसे,—वे दूसेरे टाट के हैं । मुहा॰—एक ही टाट के = (१) एक ही बिरादरी के । (२) एक साथ उठने बैठनेवाले । एक ही मंडली के । एक ही दल के । एक ही विचार के । टाट बाहर होना =बहिष्कृत होना । जाति पाँति से अलग होना ।
३. साहूकार के बैठने का बिछावन । महाजन की गद्दी । मुहा॰—टाट उलटना = दिवाला निकालना । दिवालिया होने की सूचना देना । विशेष—पहले यह रिति थी कि जब कोई महाजन दिवाला बोलता था, तब वह अपनी कोठी या दूकान पर का टाट और गद्दी उलटकर रख देता था जिससे व्यवहार करनेवाले लौट जाते थे ।
टाट ^२ वि॰ [अं॰ टाइट ] कसा हुआ ।—(लश॰) । महा॰—टाट करना = मस्तूल खड़ा करना ।