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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

टक संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ टक ( = बाँधना) या सं॰ भाटक]

१. ऐसा ताकना जिसमें बड़ी देर तक पलक न गिरे । किसी ओर लगी या बँधी हुई द्दष्टि । गड़ी हुई नजर । स्थिर द्दष्टि । क्रि॰ प्र॰—लगना ।—लगाना । मुहा॰—टक बँधना = स्थिर द्दष्टि होना । टक बाँधना = किसी की ओर स्थिर दृष्टि से देखना । टकटक देखना = बिना पलक गिराए लगातार कुछ काल तक देखते रहना । टक लगाना = आसरा देखते रहना । प्रतीक्षा में रहना ।

२. लकड़ी आदि भारी बोझों को तोलनेवाले बड़े तराजू का चोखूँटा पलड़ा ।