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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

झोली ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ झूलना]

१. इस प्रकार मोड़कर हाथ में लिया या लटकाया हुआ कपड़ा कि उसके नीचे का भाग एक गोल बरतन के आकार का हो जाय और उसमें कोई वस्तु रखी जा सकै । कपड़े को मोड़कर बनाई हुई थैली । धोकरी । जैसे, गुलला की झोली, साधुओं की झोली । विशेष—यह किसी चौखूँटे कपड़े के चारों कोनों को लेकर इकट्ठा बाँधने से बन जाती है । कभी कभी इसके नीचे के खुले हुए चारों कोनों को कुछ दूर तक सी भी देते हैं । मुहा॰—झोली छोड़ना = बुढ़ापे के कारण शरीर के चमड़े का झूल जाना । झोली डालना = भिक्षा माँगने के लिये झोली उठाना । साधु या भिक्षुक हो जाना । झोली भरना = साधु को भरपूर भिक्षा देना ।

२. घास बाँधने का जाल ।

३. मोट । चरसा । पुर

४. वह कपड़ा जिससे खलिहान में अनाज में मिला हुआ भूसा उड़ाकर अलग किया जाता है ।

५. बौंरा । कुशती का एक पेंच । विशेष—यह पेंच उस समय किया जाता है । जब विपक्षी किसी प्रकार अपनी पीठ पर आ जाता है । इसमें एक हाथ उलटकर उसकी कमर पर देते हैं और दूसरे से उसकी टाँगों की संधि पकड़ कर उठाते हैं ।

६. सफरी बिस्तर जो चारों कोनों पर लगी हुई रस्सियों के द्वारा खंभे पेड़ आदि में बाँधकर फैलाया जाता है ।

७. रस्सियों का एक प्रकार का फंदा जिसके द्वारा भारी चीजों को उठाते हैं ।

झोली ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ ज्वाला या झाला] राख । भस्म । मुहा॰—झोली बुझाना = सब काम हो चुकने पर पीछे उसे करने चलना । कोई बात हो जाने पर व्यर्थ उसके संबंध में कुछ करना । जैसे,—पंचायत तो हो चुकी क्या झोली बुझाने आए हो ? विशेष—यह मुहावरा घर जलने की घटना से लिया गया है अर्थात् जब घर जलकर राख हो गया तब पानी लेकर बुझाने के लिये पहुँचे ।