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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

झूलना क्रि॰ अ॰ [सं॰ दोलन]

१. किसी लटकी हुई वस्तु पर स्थित होकर अथवा किसी आधार के सहारे नीचे की ओर लटककर बार बार आगे पीछे या इधर उधर हटते बढ़ते रहना । लटक कर बार बार इधर उधर हिलना । जैसे, पंखे की रस्सी झूलना, झूले पर बैठकर झलना ।

२. झूले पर बैठकर पेंग लेना । उ॰—(क) प्रेम रंग बोरी भोरी नवल- किसोरी गोरी झूलति हिंड़ोरे यो सोहाई सखियान मैं । काम झूलै उर में, उरोजन में दाम झूलै स्याम झूलै प्यारी की अन्यारी अँखियान में ।— पद्माकर (शब्द॰) । (ख) फूली फूली बेली सी नवेली अलबेली वधू झलति अकेली काम केली सी बढ़ती हैं ।— पद्माकर (शब्द॰) ।

३. किसी कार्य के होने की आशा में अधिक समय तक पड़े रहना । आसरे में अथवा अनिर्णीत अवस्था में रहना । जैसे— जो लोग बरसो से झूल रहे हैं उनका काम होता ही नहीं और आप अभी से जल्दी मचाने हैं ।

झूलना ^२ वि॰ [वि॰ स्त्री॰ झूलनी] झूलनेवाला । जो झूलता हो । जैसे झूलना पुल ।

झूलना ^३ संज्ञा पुं॰

१. एक छंद जिसके प्रत्येक चरण में ७,७,७, और ५ के विराम से २६ मात्राएँ और अंत में गुरु लघु होते हैं । जैसे- हरि राम बिभु पावन परम, गोकुल बसत मनमान ।

२. इसी छंद का दूसरा भेद जिसके प्रत्येक चरण में १०, १० १० और ७ के विराम से ३७ मात्राएँ और अंत में यगण होता है । जैसे,— जैति हिम बालिका अमुर कुल घालिका कालिका मालिका सुरस हेतु ।

३. हिंड़ोला । झूला । (क्व॰) । उ॰— अँबवा की डाली तले आली झूलना डला दे ।—गीत (शब्द॰) ।