झूल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनझूल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ झूलना]
१. वह चौकोर कपड़ा जो प्रायः शोभा के लिये चौपायों की पीठ पर डाला जाता है । उ॰— शेर के समान जब लीन्हे सावधान श्वान झूलन ढपान जिन वेग बेप्रमान है ।—रघुराज (शब्द॰) । विशेष— इस देश में हाथियों और घोड़ों आदि पर जो झूल डाली जाती है वह प्रायः मखमल की और अधिक दामों की होती है और उसपर कारचोबी आदि का काम किया होता है । बड़े बड़े राजाओं के हाथियों की झूलों में मोतियों की झालरें तक चँकी होती हैं । ऊँटों तथा रथों के बैलों पर भी इसी प्रकार की झूलें ड़ाली जाती हैं । आजकल कुत्तों तक पर झूल ड़ाली जाने लगी है । मुहा॰— गधे पर झूल पड़ना = बहुत ही अयोग्य या कुरूप मनुष्य के शरीर पर बहुमूल्य और बढ़िया वस्त्र होना ।—(व्यंग्य) ।
२. वह कपड़ा जो पहना जाने पर भद्दा और बेहंगम जान पड़े ।— (व्यंग्य) । पु
३. दे॰ 'झूला' । उ॰— मखतूल के झूल झुलावत केशव भानु मनो शनि अंक लिए ।— केशव (शब्द॰) ।
झूल † ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰] झुंड़ । समूह । उ॰— जो रखवालत जगत मैं, झाड़ी जंबक झूल ।— बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ १४ ।
झूल पु ^३ संज्ञा पुं॰ [हिं॰झूलन] झूलते समय झूले को आगे और पीछे झोंका देना । पेंग । उ॰— बिच झुरमुट झूला चलत, जल छवै लाँबी झूल ।— घनानंद, पृ॰ २१५ ।