झिलमिल
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनझिलमिल ^१ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰]
१. काँपती हुई रोशनी । हिलता हुआ प्रकाश । झलमलाता हुआ उजाला ।
२. ज्योति की अस्थिरता । रह रहकर प्रकाश के घटने बढ़ने की क्रिया । उ॰— (क) हेरि हेरि बिल में न लीन्हों हिलमिल में रही हौं हाथ मिल में प्रभा की झिलमिल में ।—पद्माकर (शब्द॰) । (ख) घुँघट कै घूमि कै सु झूमके जवाहिर के झिलमिल झालर की भूमि झिल झुकत जात ।— पद्माकर (शब्द॰) ।
३. बढिया मलमल या तरजेब की तरह का एक प्रकार का बारीक और मुलायम कपड़ा । उ॰—(क) चँदनोता जो खरदुख भारी । बाँस- पूर झिलमिल की सारी ।—जायसी (शब्द॰) । (ख) राम आरती होन लगी है, जगमग जगमग जोति जगी है । कंचन भवन रतन सिंहासन । दासम डासे झिलमिल डासन । तापर राजत जगत प्रकाशन । देखत छोबि मति प्रेम पगी है ।— मन्नालाल (शब्द॰) । पु
४. युद्ध में पहननै का लोहे का कवच । उ॰— करन पास लीन्हैत कै छंड़ू । विप्र रूप धरि झिलामिल इंदू ।— जायसी (शब्द॰) ।
झिलमिल वि॰ रह रहकर चमकता हुआ । झलमलाता हुआ । उ॰— नदी किनारे मैं खड़ी पानी झिखमिल होय । मै मैली प्रेय ऊजरे मिलना किस विधि होय ।— (शब्द॰) ।