प्रकाशितकोशों से अर्थ

सम्पादन

शब्दसागर

सम्पादन

झारी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ झरना] लुटिया की तरह एक प्रकार का लँबोतरा पात्र जिसमें जल गिराने के लिये एक और एक टोंटी लगी रहती है । इस टोंटी में से धार बँधकर जल निकलता है । इसका व्यवहार देवताओं पर जल चढ़ाने अथवा हाथ पैर आदि धुलाने में होता है । उ॰— (क) आसन दे चौकी आगे धरि । जमुनाजल राख्यो झारी भरि ।— सूर (शब्द॰) । (ख) आपुन झारी माँगि विप्र के चरन पखारे । हती टूर श्रम कियों राज द्विज भए दुखारे ।— सूर (शब्द॰) ।

झारी ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ झारि] वह पानी जिसमें अमचुर, जीरा, नमक आदि घुला हुआ हो । इसका व्यवहार पश्चिम में अधिक होता हैँ ।

झारी पु ^३ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ झाड़ी] दे॰ 'झाड़ी' । उ॰—फूल झरें सखीं फुलवारी । दिस्टि परीं उकठीं 'सब झारी' ।— जायसी ग्रं॰, पृ॰ २५४ ।

झारी ^४ वि॰ [हिं॰] दे॰ 'झार' ।

झारी पु † संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ झोली]

१. झोली । उ॰— (क) भाय करी मन की पद्माकर ऊपर नाय अबीर की झोरी ।— पद्माकर (शब्द॰) । (ख) हमारे कौन वेद विधि साधे । बदुआ झोरी दंड़ अधारी इतनेन को आराधै ।— सूर (शब्द॰) ।

२. पेट । झोझर । ओझर । उ॰— जो आवै आनगनत करोरी । डारै खाइ भरै नहिं झोरी ।— विश्राम (शब्द॰) ।

३. एक प्रकार की रोटी । उ॰— रोटी वाटी पोरी झोरी । एक कोरी एक घीव चभोरी ।— सूर (शब्द॰) । पु

४. रस्सी आदि के जालों या फंदों से युक्त झोला के आकार का बड़ा जाल जिसमें आहत लोगों को उठाकर पहुँचाते थे । दे॰ 'झोली'-७ । उ॰— (क) बद्धाइय दिल्ली नयर अवर सेन जुधमग्ग । घाय घुमत झोरिन घले, श्रवन सुनंतह अग्गि ।— पृ॰ रा॰, ६१ । २४६८ । (ख) वाजीद षांन झोरी धरिय, धाउ पंच रंधर नृपति ।— पृ॰ रा॰ १० । ३४ ।