प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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झाँझ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ झल्लक या झनझन से अनु॰]

१. मजीर की तरह के, पर उससे बहुत बड़े काँसे के ढले हुए तश्तरी के आकार के दो ऐसे गोलाकार टुकड़ों का जोड़ा जिसके बीच में कुछ उभार होता है । झाल । उ॰—(क) घंटा घंटि पखाउज आउज झाँझ बेनु उफ ताल ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ २६५ । (ख) ताल मृदंग झाँझ इंद्रिनि मिलि बीना बेनु बजायौ ।—सूर॰, १ ।२०५ । क्रि॰ प्र॰—पीटना ।—बजाना । विशेष—इसकी उभार में एक छेद होता है जिसमें डीरी पिरौई रहती है । इसका व्यवहार एक टुकड़े से दूसरे टुकड़े पर आघात करके पूजन आदि के समय घड़ियालों और शंखों के साथ यों ही बजाने में, रामायण की चौपाइयों के गावे के समय राम— लीला में अथवा ताशे और ढोल आदि के साथ ताल देने में दोता है ।

२. क्रोध । गुस्सा । क्रि॰ प्र॰—उतारना ।—चढ़ाना ।—निकालना ।

३. पाजीपन । शरारत । उ॰—रुक्यो साँकरे कुंज मन करत जाँझ झकरात । मंद मंद मारुत तुरंग खुँदन आवत जात ।— बिहारी (शब्द॰) ।

४. किसी दुष्ट मनोविकार का आवेग ।

५. सूखा हुआ कुआँ या तालाब ।

६. भोग की इच्छा । विषय की कामना ।

७. दे॰ 'झाँझन' ।

झाँझ ^२ † वि॰ [सं॰ जर्जर] जो गाढ़ा या नहरा न हो । मामूली । हलका (भाँग आदि का नसा) ।