प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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झर संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. पानी गिराने का स्थान । निर्झर ।

२. झरना । सोता । चश्मा । पर्वत से निकलता हुआ जलप्रवाह ।

३. समूह । झुड ।

४. तेजी । वेग । उ॰—प्रात गई नीके उठि ते घर । मैं बरजी कहाँ जाति री प्यारी तब खीझी रिस झर ते ।—सूर (शब्द॰) ।

५. झड़ी । लगातार दृष्टि ।

६. किसी वस्तु की लगातार वर्षा । उ॰—(क) वर्षत अस्त्र कवच सर फूटे । मघा मेघ मानो झर जुटे ।—लाल (शब्द॰) । (ख) पावक झर ते मेह झर दाहक दुसह बिसेखि । दहै देह वाके परस याहि दृगन की देखि ।—बिहारी (शब्द॰) । (ग) सूरदास तबही तम नासौ ज्ञान अगिन झर फूटै ।—सूर (शब्द॰) ।

७. आँच । ताप । लपट । ज्वाला । झाल । उ॰—(क) श्याम अंकम भरि लीन्हीं विरह अगिन झर तुरत बुझानी ।—सूर॰ (शब्द॰) (ख) श्याम गुणराशि मानिनि मनाई । रह्यो रस परस्पर मिटयो तनु बिरह झर भरी आनंद प्रिय उन न माई ।—सूर (शब्द॰) । (ग) सटपटाति सी ससिमुखी मुख घूँघट पट ढाँकि । पावक झर सी झमकि कै गई झरोखे झाँकि ।—बिहारी (शब्द॰) । (घ) नेकु न झुरसी बिरह झर नेह लता कुंभिलाति । नित नित होत हरी हरी खरी झालरति जाति ।—बिहारी (शब्द॰) ।

८. ताले का खटका । ताले की भीतर की कल । ताले का कुत्ता ।