प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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झँझरी ^१ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ जर्जर, हि॰ झर झर अनु॰]

१. किसी चीज में बहुत से छोटे छोटे छेदों का समूह । जाली । उ॰—(क) झँझरी के झरोखनि ह्वै कै झकोरति रावटी हूँ मैं न जात सही ।—देव (शब्द॰) । (ख) झँझरी फूट चूर होई जाई । तबहि काल उठि चला पराई ।— कबीर मं॰, पृ॰ ५६४ ।

२. दिवारों आदि में बनी हुई छोटी जालीदार खिड़की ।

३. लोहे का वह गोल जालीदार या छेददार टुकडा़ जो दमचूल्हे आदि में रहता है और जिसके ऊपर सुलगते हुए कोयले रहते हैं । जले हुए कोयले की राख इसी के छेदों में से नीचे गिरती है । दमचूल्हे की जाली या झरना ।

४. लोहे आदि की कोई जालीदार चादर जो प्रायः खिड़कियों या बरामदों में लगाई जाती है ।

५. आटा छानने की छलनी ।

६. आग आदि उठाने का झरना ।

७. दुपट्टे या धोती आदि के आँचल में उसके बाने के सूतों का, सुंदरता या शोभा के लिथे बनाया हुआ छोटा जाल, जो कई प्रकार का होता है ।

झँझरी ^२ वि॰ स्त्री॰ [हिं॰ झँझरा का अल्पा॰ स्त्री॰]दे॰ 'झँझरा' ।

झँझरी ^२ वि॰ स्त्री॰ [सं॰ जर्जर] छिद्रों से भरी हुई । जिसमें बहुत से छेद हों । उ॰—(क) कबिरा नाव त झाँजरी कूटा खेवन— हार । हलक हलका तरि गया बुड़े जिन सिर बार ।—कबीर (शब्द॰) । (ख) गहिरी नदिया नाव झाँझरी, बोझा अधिक भई ।—धरम॰ श॰, पृ॰ २६ ।