झँखना पु क्रि॰ अ॰ [हिं॰ झंखना]दे॰ 'झंखना' । उ॰—(क) क्रीड़त प्रात समय दोउ बीर । माखन माँगत, बात न मानत, झँखत जसोदा जननी तीर ।—सूर॰, १० ।१६१ । (ख) सूरज प्रभु आवत हैं हलधर को नहिं लखत झँखति कहति तो होते संग दोऊ ।—सूर (शब्द॰) ।