प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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जुआ ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ द्यूत, पा॰ जूत] वह खेल जिसमें जीतनेवाले को हारनेवाले से कुछ धन मिलता है । रुपए पैसे की बाजी लगाकर खेल जानेवाला खेल । किसी घटना की संभावना पर हार जीत का खेल । द्यूत । उ॰— आछो जनम अकारथ गायो । करी न प्रीति कमललोचन सों जन्म जुआ ज्यों हारयो—सूर (शब्द॰) । विशेष— जुआ कौड़ा, पासे, ताश आदि कई वस्तुओं से खेला जाता है पर भारत में कोड़ियों से खेलने का प्रचार आजकल विशेष है । इसमें चित्ती कोड़ियों को लेकर फेकते हैं और चित्त पड़ी हुई कौड़ियों की संख्या के अनुसार दाँवों की हार जीत मानते हैं । सोलह चित्ती कौड़ियों से जो जुआ खेल जाता है उसे सोरही कहते हैं । क्रि॰ प्र॰— खेलना ।—जीतना ।—हारना ।—होना ।

जुआ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ युज (= जोड़ना)]

१. गाड़ी, छकड़े, हल आदि की वह लंकड़ी जो बैलीं के कंधे पर रहती है ।

२. जांते के चक्की या मूँठ ।

जुआ ^३ संज्ञा पुं॰ [हि॰ जुवा] दे॰ 'युवा' । उ॰— बाल बुद्ध जुआ नर नारिन की एक संग । —प्रेमघन॰, भा॰ १, पृ॰, ८९ ।