कला जीरा का पौधा

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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जीरा संज्ञा पुं॰ [सं॰ जीरक, तुलनीय फ़ा॰ जीरह्] डेढ़ दो हाथ ऊँचा एक पौधा । विशेष—इसमें सौंफ की तरह फूलों के गुच्छे लंबी सीकों में लगते हैं । पत्तियाँ बहुत बारीक और दूब की तरह लंबी होती हैं । बंगाल और आसाम कतो छोड़ भारत में यह सर्वत्र अधि- कता से बोया जाता है । लोगों का अनुमान है कि यह पश्चिम के देशों से लाया गया है । मिस्र देश तथा भूमध्य सागर के माल्टा आदि टापुओं में यह जंगली पाया जाता है । माल्टा का जीरा बहुत अच्छा और सुगंधित होता है । जीरा कई प्रकार का होता है पर इसके दो मुख्य भेद माने जाते हैं— सफेद और स्याह अथवा श्वेत और कृष्ण जीरक । सफेद या साधारण जीरा भारत में प्रायः सर्वत्र होता है, पर स्याह जीरा जो अधिक महीन और सुगंधित होता है । काश्मीर लद्दाख, बलूचिस्तान तथा गढ़वाल और कुमाऊँ से आता है । काश्मीर और अफगनिस्तान में तो यह खेतों में और तृणों के साथ उगता है । माल्टा आदि पश्चिम के देशों से जो एक प्रकार का सफेद जीरा आता है वह स्याह जीरे की जाति का है और उसी की तरह छोटा और तीव्र गंध का होता है । वैद्यक में यह कटु, उष्ण, दीपक तथा अतीसार, गृहणी, कृमि और कफ वात को दूर करनेवाला माना जाता है । पर्या॰—जरण । अजाजी । कणा । जीर्ण । जीर । दीप्य । जीरण । अजाजिका । बह्विशिख । मागध । दीपक । मुहा॰—ऊँट के मुँह में जीरा = खाने की कोई चीज मात्रा में बहुत कम होना ।

२. जीरे के आकार के छोटे छोटे महीन और लंबे बीज ।

३. फूलों का केसर । फूलों के बीज का महीन सूत ।