प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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जियरा पु † संज्ञा पुं॰ [हिं॰ जीव]

१. जीव । मन । चित्त । उ॰— मेरो स्वभाव चितैबे को माई री लाल निहारि कै बंसी बाजाई । वा दिन तें मोहि लागी ठगोरी सी लोग कहैं कोउ बावरी आई । यौं रसखानि घिरयो सिरगो ब्रज जानत वे कि मेरो जियरा ई । जो कोउ चाहै भलो अपनो तो सनेह न काहू सो कीजिए माई ।—रसखान (शब्द॰) ।

२. प्राण । उ॰—जियरा जावगे हम जानी । पाँच तत्व को बनो है पिंजरा जिसमें वस्तु बिरानी । आवत जावत कोइ न देखा डूब गया बिन पानी ।—कबीर श॰, भा॰, पृ॰ ।