कपड़ा, पहनावा

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

जामा संज्ञा पुं॰ [फा़॰ जामह्]

१. पहनावा । कपडा़ । वस्त्र । उ॰— सत कै सेल्ही जुगत कै जामा छिमा ढाल ठनकाई ।—कबीर श॰, भा॰ २, पृ॰ १३२ ।

२. एक प्रकार का घुटने के नीचे बडे़ घेरे का पुराना पहनावा । उ॰—हिंदू घुटने तक जामा पहनते हैं और सिर और कंधों पर कपडा़ रखते हैं ।—भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ १ पृ॰ २४९ । विशेष—इस पहनावे का नीचे का घेरा बहुत बडा़ और लहँगे की तरह चुननदार होता है । पेट के ऊपर इसकी काट बगलबंदी के ढंग की होती है । पुराने समय में लोग दरबार आदि में इसे पहनकर जाते थे । यह पहनावा प्राचीन कंचुक का रूपांतर जान पड़ता है जो मुसलमानों के आने पर हुआ होगा, क्योंकि यद्यपि यह शब्द फारसी है, तथापि प्राचीन पारसियों में इस प्रकार का पहनावा प्रचलित नहीं था । हिंदुओं में अबतक विवाह के अवसर पर यह पहनावा दुलहे को पहनाया जाता है । मुहा॰—जामे से बाहर होना = आपे से बाहर होना । अत्यंत क्रोध करना । जामे में फूला न समाना = अत्यंत आनंदित होना । यौ॰—जामाजेब = वह जिसके शरीर पर वस्त्र शोभा पाता हो । जामादार = कपड़ों की देखभाल करनेवाला नौकर । जामा- पोश = वस्त्रयुक्त परिधानयुक्त ।