जड़
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनजड़ ^१ वि॰ [सं॰ जड]
१. जिसमें चेतनता न हो । अचेतन ।
२. जिसकी इंद्रियों की शक्ति मारी गई हो । चेष्टाहीन । स्तब्ध
३. मंदबुद्धि । नासमझ । मूर्ख ।
४. सरदी का मार या ठिठुरा हुआ ।
५. शीतल । ठंढा ।
६. गुँगा । मूक । ७ जिसे सुनाई न दे । बहरा ।
८. अनजाना । अनभिज्ञ ।
९. जिसके मन में मोह हो । जो वेद पढ़ने में असमर्थ हो (दायभाग) ।
जड़ ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰ जडम्]
१. जल । पानी ।
२. बरफ ।
३. सीसा नाम की धातु ।
४. कोई भी अचेतन पदार्थ (को॰) ।
जड़ ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ जटा (= वृक्ष की जड़)] वृक्षों और पौधों आदि का वह भाग जो जमीन के अंदर दबा रहता है और जिसके द्वारा उनका पोषण होता है । मूल । सोर । विशेष—जड़ के मुख्य दो भेद हैं । एक मूसल या डंडे के आकार की होती है और जमीन के अंदर सीधी नीचे की और जाती है; और दूसरी झकरा जिसके रेशे जमीन के अंदर बहुत नीचे नहीं जाते और थोड़ी ही गहराई में चारो तरफ फैलते है । सिचाई का पानी और खाद आदि जड़ के द्रारा ही वृक्षों और पौधों तक पहुँचती है । यौ॰—जड़मूल । वह जिसके ऊपर कोई चीज स्थित हो । नींव । बुनियाद । मुहा॰—जड़ उखाड़ना, काटना या खोदना = किसी प्रकार की हानि पहुँचाकर या बुराई करके समूल नाश करना । ऐसा नष्ट करना जिसमें वह फिर अपनी पूर्वस्थिति तक न पहुँच सके । खड़ जमना = द्दढ़ या स्थायी होना । जड़ पकड़ना जमना । दृढ़ होना । मजबूत होना । जड़ पड़ना=नींव पड़ना बुनियाद पड़ना । शुरू होना । जड़ बुनियाद से, जड़मूल से = आमुलतः । समूल । जड़ में पानी देना या भरना = दे॰ 'जड़ उखाड़ना' । जड़ में मट्ठा डालना = सर्वनाश का प्रयोग करना । जड़ सींचना = आधार को पुष्ट करना ।
३. हेतु । कारण । सबब । जैसे,—यही तो सारे झगड़ों की जड़ है ।
४. वह जिसपर कोई चीज अवलंबित हो । आधार ।