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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

जंजाल पु † संज्ञा पुं॰ [हिं॰ जग + जाल] [वि॰ जंजालिया, जंजाली]

१. प्रपंच । झंझट । बखेड़ा । उ॰—अस प्रभु दीनबंघु हरि, कारन रहित दयाल । तुलसिदास सठ ताहि भजु छाड़ि कपट जंजाल ।—तुलसी (शब्द॰) ।

२. बंधन । फँसान । उलझन । उ॰—(क) आज्ञा लै के चल्यो नुपति वहँ उत्तर दिशा विशाल । करि तप विप्र जनम जब नीन्हों, मिटयो जन्म जंजाल ।—सूर॰ (शब्द॰) । (ख) हदय की कबहुं न पीर घटी । दिन दिन होन छीन भई काया, दुख जंजाल जटी ।—सूर॰ (शब्द॰) । मुहा॰—जंजाल तोड़ना = बंधन या फँसाव को दूर करना । उ॰—भव जंजाल तोरि तरु वन के पल्लव हृदय विदाचो ।—सूर॰ (शब्द॰) । जंजाल में पड़ना या फँसना = कठिनता में पड़ना । संकट में पड़ना । उलझन में फँसना ।

३. पानी का भँवर ।

४. एक प्रकार की बड़ी पलीतेदार बदूक जिसकी नाल बहुत लंबी होती है । यह बहुत भारी होती है और दूर तक मार करती है । उ॰—सूरज के सूरज गहि लुट्टिय । तुपक तेग जंजालन छुट्टिय ।—सूदन (शब्द॰) ।

५. एक बड़े मुँह की तोप । इसमें कंकड़ पत्थर आदि भरकर फेंके जाते थे । यह बहुधा किले का धुस तोड़ने के काम में आती थी ।

६. बड़ा जाल ।