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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

जक ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ यक्ष, प्रा॰ जक्ख]

१. धनरक्षक भूत प्रेत । यक्ष ।

२. कंजूस आदमी ।

जक ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ झक] [वि॰ भक्की]

१. जिद्द । हठ । अड़ । उ॰—हुती जितीं जग मैं अधमाई सो मैं सबै करी । अधम समूह उधारन कारन तुम जिय जक पकरी ।—सूर॰, १ ।१३० । क्रि॰ प्र॰—पकड़ना ।

२. धुन । रट । ज॰—जदपि नाहिं नाहिं नहीं बदन लगी जक जाति । तदपि भौंह हाँसी भरिनु, हाँसी पै ठहराति ।—बिहारी (शब्द॰) । कि॰ प्र॰—लगना । मुहा॰—जक बँधना = रट लगना । धुन लगना । उ॰—तव पद चमक चकचाने चंद्रचूर चख चितवत एक टक जक बँध गई है ।—चरण (शब्द॰) ।

जक ^३ संज्ञा स्त्री॰ [फा़॰ जक]

१. हार । पराजय । उ॰—यही हैं अकसर कजा के जिनसे फरिश्ते भी, जक उठा चुके हैं ।— भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ॰ ८५७ ।

२. हानि । घाटा टोटा । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।—पाना ।

३. पराभव । लज्जा ।

४. डर । खौफ । भय ।

जक ^४ संज्ञा स्त्री॰ [अ॰ जका] सुख । शांति । चैन । उ॰—सुख चाहै अरु उद्यमी जक न परे दिन राति ।—सुंदर ग्रं॰, भा॰ १, पु॰ १७४ ।