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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

जंता ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ यन्त्र] [स्त्री॰ जंती, जंतरी]

१. यंत्र । कल । जैसे, जंताघर ।

२. सोनारों और तारकसों का एक औजार जिसमें डालकर वे तार खोंचते हैं । विशेष—यह औजार लोहे की एक लंबी पटरी होती है जिसमें बहुत से ऐसे छेद कई पंक्तियों में होते हैं जो क्रमशः छोटे होते जाते हैं । सोनार सोने या चाँदी के तारों को पहले बड़े छेदों में, फिर उससे छोठे छेदों में, फिर और छोटे छेदों में क्रमानुसार निकालकर खीचते हैं जिससे तार पतले होकर बढ़ते जाते हैं ।

जंता ^२ वि॰ [सं॰ यान्त्रि ( = यंता)] यंत्रण देनेवाला । दंड़ देनेवाला । शासन करनेवाला । उ॰—साकिनी डाकिनी पूतना ग्रेत बैताल भूत प्रथम जूथ जंता ।—तुलसी ग्रं॰, पृ॰ ४६७ ।

जंता ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ यन्ता] अश्वरथ का वाहक । सारथी उ॰— जाकों तु भयौ जात है जंता । अठयौं गर्भ सु तेरो हुंता ।— नंद॰ ग्रे॰, पृ॰ २२१ ।

जंता ^४पु संज्ञा पुं॰ [सं॰ जनितृ > जनिता] [स्त्री॰ जती] पिता । बाप ।