प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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छछूँदर संज्ञा पुं॰ [सं॰ छच्छुन्दर] [स्त्री॰ छछुंदरी]

१. चूहे की जाति का एक जंतु । विशेष—इसकी बनावट चहे की सी होती है, पर इसका थुथन अधिक निकला हुआ और नुकीला होता है । इसके शरीर के रोएँ भी छोटे और कुछ आसमानी रंग लिए खाकी या राख के रंग के होते हैं । यह जंतु दिन को बिलकुल नहीं देखता और रात को छू छू करता चरने के लिये निकलता है और कीडे मकोडे खाता है । इसके शरीर से बडी तीव्र तीव्र दुर्गध आती है । लोगों का विश्वास है कि छछूँदर के छू जाने से तलवार का लोहा खराब हो जाता है और फिर वह अच्छी काट नहीं करता । यह भी कहा जाता है कि जब साँप छछूँदर को पकड लेता है, तब उसे दोनों प्रकार से हानि पहुँचती है: यदि छोड़ दे तो अधा हो जाय और यदि खा ले तो वह मर जाता है; इसी से तुलसीदास ने कहा है-धर्म सनेह उभयमति घेरी । भइ गति साँप छछूँदर केरी । छछूँदह तंत्रों के प्रयोगों में भी काम आता है ।

२. एक प्रकार का यंत्र या ताबीज जिसे राजपूताने में पुरोहित अपने यजमानों को पहनाता है । यह गुल्ली के आकार का सोने चाँदी आदि का बनाया जाता है ।

३. एक आतिशबाजी जिस छोड़ने से छू छू का शब्द निकलता है ।

४. वह व्यक्ति जो छछूँदर की तरह व्यर्थ इधर उधर घूमता हो । मुहा॰—छछूँदर छोडना—ऐसी बात कहना जिससे लोगों में हलचल सच जाय । आग लगाना ।