छकना
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनछकना ^१ क्रि॰ अ॰ [सं॰ चकन ( = तृप्त होना) ] [संज्ञा छाक]
१. खा पीकर अघाना । तृप्त होना अफरना । जैसे,—उसने खूब छककर खाया । उ॰—अब्बासी, हुजूर वह खूब छककर खा चुकी ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ ६१ । संयो॰ क्रि॰—जाना ।
२. तृप्तहोकर उन्मत्त होना । मद्यआदि पीकरनशे में चूर होना । उ॰—(क) ते छकि नव रस केलि करेहीं । जोग लाइ अधरन रस लेहीं ।—जायसी (शब्द॰) (ख) केशवदास घर घर नाचत फिरहिं गोप एक रहे छकि ते मरेई गुनियत हैं । केशव (शब्द॰) ।
छकना ^२ क्रि॰ अ॰ [सं॰ चक (= भ्रांत)]
१. चकराना । अचंभे में आना ।
२. हैरान होना । तंग होना । दिक होना । जैसे-वहाँ जाकर हम खूब छके, कहीं कोई नहीं था ।