प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चोआ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चुआना (= टपकाना)]

१. एक प्रकार का सुगंधित द्रव पदार्थ जो कई गंधद्रव्यों को एक साथ मिलाकर गरमी की सहायता से उनका रस टपकाने से तैयार होता है । विशेष—इसके तैयार करने की कई रीतियाँ हैं — (क) चंदन का बुराद, देवदार का बुरादा और मरसे के फूलों को एक में मिलाते और गरम करके उनमें से रस टपकाते हैं । (ख) केसर, कस्तूरी आदि को मरसे के फूलों के रस में मिलाते और गरम करके उसमें से रस टपकाते हैं । (ग) देवदार के निर्यास को गरम करके टपकाते हैं ।

२. वह कंकड, पत्थर या इसी प्रकार की और कोई चिज जो किसी बाट की कमी को पूरा करने के लिये पलडे पर रखी जाती है । पसँगा ।

३. खेल में लगे हुए दो समूहों में से किसी समूह का वह आदमी किसी खिलाडी के थक जाने पर या चोट खाने पर उसके स्थान पर खेलता है । मुहा॰— चोवा लगना = किसी की ओर से कोई काम करना ।

४. वह थोडी चीज जो किसी प्रकार की कमी पूरी करने के लिये उसी जाति की अधिक चीज के साथ रखी जाती है ।

५. वह दाँव जो मुख्य जुआरी के साथ दूसरे जुआरी छोटी रकम के रुप में लगाते हैं ।

६. दे॰ 'चोटा' या 'छोवा' ।