चीर

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चीर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. वस्त्र । कपडा । उ॰— (क) प्रातकाल असनान करन को यमुना गोपि सिधारी । लै कै चीर कदंब चढै हरि बिनवत हैं ब्रजनारी ।—सूर (शब्द॰) । (ख) कीर के कागज ज्यौं नृप चीर विभूषन, उप्पम अंगनि पाई ।— तुलसी ग्रं॰, पृ॰ १६१ ।

२. वृक्ष की छाल ।

३. पुराने कपडे का टुकडा । चिथडा । लता ।

४. गौ का थन ।

५. चार लडियों वाली मोतियों की माला ।

६. मुनियों, विशेषत: बौद्ध भिक्षुओं के पहनने की कपडा ।

७. एक ब़डा पक्षी जो प्राय: तीन फुट लंबा होता है और जिसका शिकार किया जाता है । विशेष—यह कुमाऊँ, गढवाल तथा अन्य पहाडी जिलों में पाया जाता है । इसकी दुम बहुत लंबी और खूबसूरत होती है । यह 'चीर चीर ' का शब्द कहता है, इसी से इसे चीर कहते हैं ।

८. धूप का पेड । वि॰ दे॰'चीड' ।

९. छप्पर का मँगरा । मथौथ ।

१०. सीसा नामक धातु ।

चीर ^२ संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ चीरना]

१. चीरने का भाव या क्रिया । यौ॰—चीर फाड = चीरने या फाडने का भाव या क्रिया ।

२. चीरकर बनाया हुआ शिगाफ या दरार । क्रि॰ प्र॰—डालना ।—पडना ।

३. कुश्ती का एक पेंच । विशेष—यह उस समय किया जाता है जब जोड (विपक्षी) पीछे से कमर पकडे होता है । इसमें दाहिनें हाथ से जोड का दाहिना हाथ और बाएँ से बाँया हाथ पकडकर पहलवान उसके दोनों हाथों को अलग करता हुआ निकल आता है ।

चीर फाड संज्ञा स्त्री॰ [हिं॰ चीर+फाड]

१. चीरने फाडने का काम ।

२. चीरने फाडने का भाव ।