प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चित्रा संज्ञा स्त्री॰ [सं॰]

१. सत्ताईस नक्षत्रों में से चौदहवाँ नक्षत्र । विशेष—इसकी तारा संख्या एक मानी गई है, पर यह योगतारा भी दिखाई देता है । इसकी कला ४० और विक्षेप दो कला है । इसका कलांश तेरह है; अर्थात् यह सूर्य कक्षा के तेरहवें अंश के बीच अस्त और तेरहवें अंश पर उदय होता है । यह पूर्व दिशा में उदय होता है और पश्चिम में अस्त होता है (सूर्यसिद्धांत) । शतपथ ब्राह्मण के अनुसार सुंदर और चित्र विचित्र होने के कारण ही इसे चित्रा कहते हैं । फलित में यह पार्श्वमुख नक्षत्र माना गया है । इसमें गृहारंभ, गृहप्रवेश, हाथी, रथ, नौका, घोड़े आदि का व्यवहार शुभ है । इस नक्षत्र में जिसका जन्म होता है वह राक्षसगण में माना जाता है; विवाह की गणना में उसका मेल मनुष्यगण के साथ नहीं होता । रात्रिमान को १५ भागों में बाँट देने से मुहूर्त निकल आता है । इनमें से चौदहवें मुहूर्त को चित्रा का मुहूर्त मान लेना चाहिए, चाहे और कोई दूसरा नक्षत्र भी हो । जो जो कार्य चित्रा नक्षत्र में हो सकते हैं, वे सब चित्रा मुहूर्त में भी हो सकते हैं ।

२. मूषिकपर्णी ।

३. ककड़ी या खीरा ।

४. दंती वृक्ष ।

५. गंड दूर्वा ।

६. मजीठ ।

७. बायबिडंग ।

८. मूसाकानी । आखुकर्णी ।

९. आजवाइन ।

१०. सुभद्रा ।

११. एक सर्प का नाम ।

१२. एक नदी का नाम ।

१३. एक अप्सरा का नाम ।

१४. एक रागिनी जो भैरव राग की पाँच स्त्रियों में मानी जाती है ।

१५. संगीत में एक मूर्छना का नाम ।

१६. पंद्रह अक्षरों को एक वर्णवृति जिसमें पहले तीन नगण, फीर दो यगण होते हैं । जैसे,—मो मो माया याही जानो याहि छाड़े बिना ना । पावै कोउ प्यारे भौ सिंधू कबौं पार जाना ।

१७. एक छंद जिसमें प्रत्येक चरम में सोलह मात्राएँ होता हैं और अत में एक गुरु होता है । इसकी पाँचवीं, आठवीं और नवीं मात्रा लघु होती है । यह चौपाई का एक भेद है । जैसे— इतनहि कहि निज सदनै आई ।—(शब्द॰) ।

१८. प्राचीन काल का एक बाजा जिसमें तार लगे होते थे ।

१९. चित- कबरी गाय ।