चाय
प्रकाशितकोशों से अर्थ
शब्दसागर
चाय ^१ संज्ञा स्त्री॰ [चीनी॰ चा] एक पौधा या झाड़ जो प्रायः दो से चार हाथ तक ऊँचा होता है । विशेष—इसकी पत्तियाँ १०-१२ अंगुल लम्बी, ३-४ अंगुल चौड़ी और दोनों सिरों पर नुकीली होती हैं । इसमें सफेद रंग के चार पाँच दलों के फूल लगते हैं जिनके झड़ जाने पर एक दो, या तीन बीजों से भरे फल लगते हैं । यह पौंधा कई प्रकार का होता है । इसकी सुगंधित और सुखाई हुई पत्तियों को उबालकर पीने की चाल अब प्रायः संसार भर में फैल गई है । चाय पीने का प्रचार सबसे पहले चीन देश में हुआ । वहाँ से क्रमशः जापान, बरमा, श्याम, आदि देशों में हुआ । चीन देश में कहीं कहीं यह कहानी प्रचलित है कि धर्म नामक कोई ब्राह्मण चीन देश में धर्मोपदेश करने गया । वहाँ वह एक दिन चलते चलते थककर एक स्थान पर सो गया । जागने पर उसे बहुत सुस्ती मालूम हुई । इसपर क्रुद्ध होकर वह अपनी भौ के बाल नोच नोचकर फेंकने लगा । जहाँ जहाँ उसने बाल फेंके, वहाँ वहाँ कुछ पौधे उग आए जिनकी पत्तियों को खाने से वह आध्यात्मिक ध्यान में मग्न हो गया । वे ही पौधे चाय के नाम से प्रसिद्ध में मग्न चीन में पहले औषध के रूप में इसका व्यवहार चाहे बहुत प्रचीन काल से हो रहा हो पर इस प्रकार उबालकर पीने की चाल वहाँ ईसा की सातवीं या आठवीं शताब्दी के पहले नहीं थी । भारतवर्ष में आसाम तथा मनीपुर आदि प्रदेशों में यह पौधा जंगली होता है । नागा की पहाड़ियों पर भी इसके जंगल पाए गए हैं । पर इसके पीने की प्रथा का प्रचा र भारतवर्ष में नहीं था । चीन से चाय मँगा मँगाकर जबसे ईस्ट इंडिया कंपनी यूरोप को भेजने लगी तभी से इसकी ओर ध्यान आकर्षित हुआ और भारत में उसके लगाने का भी उद्योग आरंभ हुआ । पहले पहल यहाँ मालाबार के किनारे पर चीन से बीज मँगाकर चाय उत्पन्न करने की चेष्टा अंग्रेजों द्वारा की गई क्योंकि तब तक यह नहीं ज्ञात था कि यह पौधा भारतवर्ष में भी जंगल में होता है । पर यह चाय उस चाय से भिन्न थी जो आसाम में होती है । लुशाई चाय की पत्तियाँ सबसे बडी होती हैं । नागा चाय की पत्तियाँ पतली और छोटी होती हैं । चाय की पत्तियाँ यों ही सुखाकर नहीं पी जाती हैं । वे अनेक प्रक्रियाओं से सुगंधित और प्रस्तुत की जाती है । चाय के अनेक प्रकार के जो नाम आजकल प्रचलित हैं, उनमें से अधिकांश क्षुपभेद के सूचक नहीं हैं, केवल प्रक्रिया के भेद से या पत्तियों की अवस्था के भेद के रखे गए हैं । साधारणतः चाय के दो भेद प्रसिद्ध हैं काली चाय और हरि चाय । यद्यपि चीन में कहीं कहीं पत्तियों में यह भेद देखा जाता है; जैसे,— कियाङसू पर्वत की हरी चाय जिसे सुंगली कहते हैं और कानटन (कैंटन) की घाटिया काली चाय, पर अधिकतर यह भेद भी अब प्रक्रिया पर निर्भर है । काली चायों में पाको, बोहिया कांगो, सूचंग बहुत प्रसिद्ध हैं और हरी चायों में से द्वांके, हैसन, बारूद आदि । काली चायों में से पीको सबसे स्वादिष्ट और उत्तम होती है और हरी चायों में से बारूद चाय सबसे बढ़िया मानी जाती है । नारंगी पीको में बहुत अच्छी सुगंध होती है । ये दोनों प्रकार की चाय पहली चुनाई की होती हैं, जब कि पत्तियाँ बिल्कुल नए कल्लों के रूप में रहती हैं । चाय बीजों से उत्पन्न की जाती है ।
२. चाय उबाला हुआ । चाय का काढ़ा ।
३. दूध तथा चीनी मिश्रित चाय का काढ़ा या पानी । क्रि॰ प्र॰— पीना ।—बनाना ।—लेना । यौ॰—चायपती जलपान ।
चाय पु ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चाव] दे॰ 'चाव' ।
चाय पु ^३ संज्ञा पुं॰ [सं॰ चय] समूह । उ॰—सुपन सुफल दिल्ली कथा, कही चदबरदाय । अब आगे करि उच्चरौं पिथ्थ अंकुर गुन चाय ।—पृ॰ रा॰, ३ । ५८ ।
चाय † ^४ संज्ञा पुं॰ [देशज] पुत्र । उ॰— नाथावत बाघ आसक्रन कवि— राय सांम के काम सादूल से चाय ।—रा॰ रू॰, पृ॰ १५१ ।