प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चाम संज्ञा पुं॰ [सं॰ चर्म] चमड़ा । खाल । चमड़ी । यौ॰—चाम के दाम = चमडे़ के सिक्के । वि॰—ऐसा प्रसिद्ध है कि निजाम नामक एक भिश्ती ने हुमायूँ को डूबने से बचाया था और इसके बदले में आधे दिन की बादशाही पाई थी । उसी आधे दिन की बादशाहत में उसने चमडे़ के सिक्के चलाए थे । मुहा॰—चाम के दाम चलाना = अपनी जबरदस्ती के भरोसे कोई काम करना । अन्याय करना । अंधेर करना । उ॰—(क) ऊधो अब कछु कहत न आवै । सिर पै सौति हमारे कुबजा चाम के दाम चलावै ।—सूर (शब्द॰) । (ख) बतियान सुनाय के सौतिन की छतियान में साल सलाय ले री । सपने हू न कीजय मान अए अपने जोबना बलाय ले री । परमेस जू रूप तरंगन सों अँग अँगन रूप रुलाय ले री । दिन चारिक तू पिय प्यारे के प्यार सों चाम के दाम चलाय ले री ।— परमेश (शब्द॰) ।

चाम ^२ संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] हल की नोक से चिरी हुई भूमि की रेखा । उ॰— एक दो चाम रावल ने खींचकर निकाली, वहाँ मोती पैदा हो गए । बाँकी॰ ग्रं॰, भा॰ १, पृ॰ ८१ ।