प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चातुर्मास्य संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. चार महीने में होनेवाला एक वैदिक यज्ञ । विशेष—कात्यायन श्रौतसूत्र अध्याय ८ में इस यज्ञ का पूरा विधान लिखा हे । सूत्र के अनुसार फाल्गुनी पौर्णमासी से इस यज्ञ का आरंभ होना चाहिए, पर भाष्य और पद्धति में लिखा है कि इसका आरंभ फाल्गुन, चैत्र या वैशाख की पूर्णिमा से हो सकता है । इस यज्ञ के चार पर्व हैं—वैश्वदेव, वरुणघास, शाकमेघ और सुनाशीरीय ।

२. चार महीने का एक पौराणिक व्रत जो वर्षा काल में होता है । विशेष—वराह के मत से अषाढ़ शुक्ल द्वादसी या पूर्णिमा से इसका उद्यापन करना चाहिए । मत्स्य पुराण में इस व्रत के अनेक विधान और फल लिखे हैं । जैसे,—गुड़त्याग करने से स्वर मधुर होता है, मद्य मांस त्याग करने से योगसिद्धि होती है, बटलोई में पका भोजन त्यागने से संतान की वृद्धि होती है, इत्यादि, इत्यादि । यह विष्णु भगवान् का व्रत है, अतः 'नमो- नारायण' मंत्र के जप का भी विधान है । सनत्कुमार के मत से इसका आरंभ आषाढ़ शुक्ल एकादशी, पूर्णिमा या कर्क की संक्राति से होना चाहिए । इन चार महीनों में काठक गृहयसूत्र के मत से यात्रियों को एक ही स्थान पर जमकर रहना चाहिए । इस नियम का पालन बौद्ध भिक्षु (यति) करते हैं ।