चरबी
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनचरबी संज्ञा स्त्री॰ [फा॰] सफेद या कुछ पीले रंग का एक चिकना गाढ़ा पदार्थ जो प्राणियों के शरीर में ओर बहुत से पौधों और वृक्षों में भी पाया जाता है । मेद । वपा । पीह । विशेष—वैद्यक के अनुसार यह शरीर की सात धातुओं में से एक है और मांस से बनता है । अस्थि इसी का परिवर्तित और परिवर्धित रूप है । पाश्चात्य रासायनिकों के अनुसार सब प्रकार की चरबियाँ गंध और स्वादरहित होती है और पानी में घुल नहीं सकतीं । बहुत से पशुओं ओर वनस्पतियों की चरबियाँ प्राय: दो या अधिक प्रकार की चरबियों के मेल से बनी होती हैं । इसका व्यवहार औषध के रूप में खाने, मरहम आदि बनाने, साबुन, और मोमबत्तियाँ तैयार करने, इंजिनो या कलों में तिल की जगह देने ओर इसी प्रकार के दूसरे कामों में होता है । शरीर के बाहर निकाली हुई चरबी गरमी में पिघलती और सरदी में जम जाती है । मुहा॰—चरबी चढ़ना = मोटा होना । चरबी छाना= (१) (किसी मनुष्य या पशु आदि का) बहुत मोटा हो जाना । शरीर में मेंद बढ़ जाना । विशेष—ऐसी अवस्था में केवल शरीर की मोटाई बढ़ती है, उसमें बल नहीं बढ़ता । (२) मदांध होना । गर्व के कारण किसी को कुछ न समझना । आखों में चरबी छाना = दे॰ 'आँख' के मुहावरे ।