चरखा

प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चरखा संज्ञा पुं॰ [फ़ा॰ चर्ख]

१. पहिए के आकार का अथवा इसी प्रकार का कोई और घूमनेवाला गोल चक्कर । चरख ।

२. लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का यंत्र जिसकी सहायता से ऊन, कपास या रेशम आदि को कातकर सूत बनाते हैं । रहट । विशेष—इसमें एक ओर बडा गोल चक्कर होता है, जिसे चर्खी कहते हैं और जिसमें एक ओर एक दस्ता लगा रहता है । दूसरी ओर लोहे का एक बड़ा सूआ होता है, जिसे तकुआ या तकला कहते हैं । जब चरखी घुमाई जाती है तब एक पतली रस्सी की सहायता से, जिसे माला कहते हैं, तकुआ घूमने लगता है । उसी तकूए के घूमने से उसके सिरे पर लगे हुए ऊन कपास आदि का कतकर सूत बनता जाता है । क्रि॰ प्र॰—कातना ।—चलाना ।

३. कुएँ से पानी निकालने का रहट ।

४. ऊख का रस निकालने के लिये बनी हुई लोहे की कल ।

५. एक प्रकार का बेलन जिससे पौटिए तार खींचते हैं ।

६. सूत लपेटने की गराड़ी । चरखी । रील ।

७. गराड़ी । घिरनी ।

८. बड़ा या बेडौल पहिया ।

९. रेशम खोलने का 'उड़ा' नाम का औजार । १० गाड़ी का वह ढाँचा जिसमें जोतकर नया घोड़ा निकालते हैं । खड़खड़िया ।

११. वह स्त्री या पुरुष जिसके सब अंग बुढापे के कारण बहुत शिथिल हो गए हों ।

१२. झगडे़ बखेडे़ या झंझट का काम । क्रि॰ प्र॰—निकलना ।

१३. कुश्ती का एक पेंच जो उस समय किया जाता है जब जोड़ (विपक्षी) नीचे होता है । विशेष—इसमें जोड़ की दाहिनी ओर बैठकर अपनी बाईं टाँग जोड़ भी दाहिनी टाँग में भीतर से जालकर निकालने हैं और अपनी दाहिनी टाँग जोड़ की गर्दन में डालकर दोनों पैर मिलाकर दंड करते हैं जिससे जोड़ चित्त हो जाता है ।