प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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चट ^१ क्रि॰ वि॰ [सं॰ चटुल (= चंचल)] जल्दी से । झट । तुरंत । फौरन । शीघ्र । यौ॰—चटपट । चट से = जल्दी से । शीघ्र । मुहा॰—चट मँगनी पट ब्याह = कोई काम तत्काल हो जाना । उ॰— पहले जोरे जाले, फिर पैगाम भेजा । चलिए चट मँगनी और पट ब्याह हो गया ।—फिसाना॰, भा॰ ३, पृ॰ १७६ ।

चट ^२पु † संज्ञा पुं॰ [सं॰ चित्र, हिं॰ चित्ती (=दाग)]

१. दाग । धब्बा ।

२. गरमी के घाव या जख्म का दाग । घाव का चकत्ता ।

३. कलंक । दोष । ऐब ।

चट ^३ संज्ञा स्त्री॰ [अनु॰]

१. वह शब्द जो कड़ी वस्तु के टूटने पर होता है जैसे, — लकड़ी चट से टूट गई । यौ॰—चटचट । विशेष— खट, पट आदि इस प्रकार के और शब्दों के समान इस शब्द का प्रयोग भी 'से' के साथ ही क्रि॰ वि॰ के समान होता है । अतः इसके लिंग का विचार व्यर्थ है । यौ॰ 'चटचट' शब्द को स्त्री॰ मानेंगे ।

२. वह शब्द जो उँगलियों को मोड़कर दबाने से होता है । उँगली फूटने का शब्द । उ॰— तुव जस शीतल पौन परसि चटकी गुलाब की कलियाँ । अति सुख पाइ असीस देत सोइ करि अँगुरिन चट अलियाँ ।— हरिश्चंद (शब्द॰) ।

चट ^४ संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चाटना] चाट पोंछकर सफा कर देना । क्रि॰ प्र॰—करना ।—कर जाना = (१) अच्छी तरह खा जाना । बाकी न छोडना । (२) निगल जाना ।

चट ^५ वि॰ [हिं॰ चाटना]

१. चाट पोंछकर खाया हुआ । मुहा॰—चट कर जाना = (१) सब खा जाना । (२) पचा जाना । हजम कर लेना । दूसरे की वस्तु लेकर न देना ।

२. चाटनेवाला । जैसे,—पतलचट या पतरचट, लँड़चट । विशेष—इस अर्थ में इस शब्द का प्रवोग समस्त शब्दों के अंत में होता है ।