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संज्ञा

  1. किसी व्यक्ति के प्रभाव या वश में होने की वह स्थिति जिसमें से निकलना सहज न हो।

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

चंगुल संज्ञा पुं॰ [हिं॰ चौ ( = चार) + अंगुल या फा॰ चंगाल]

१. चिड़ियों या पशुओं का टेढ़ा पंजा जिससे वे कोई पस्तु पकड़ते या शिकार मारते हैं । उ॰—(क) फिरत न बारहिं बार प्रचारयो । चपरि चोंच चंगुल हय हति रथ खंड खँड करि डारयो ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) चीते के चंगुल में फँसि कै करसायल घायल हैं निबहै ।—देव (शब्द॰) ।

२. हाथ के पंजों की वह स्थिति जो उँगलियों को बिना हथेली से लगाए किसी वस्तु को पकड़ने, उठाने या लेने के समय होती है । बकोट । जैसे—चंगुल भर आँटा साई को । मुहा॰—चंगुल में फँसना = पंजे में फँसना । वश या पकड़ में आना । काबू में होना ।