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प्रकाशितकोशों से अर्थ सम्पादन

शब्दसागर सम्पादन

घोर ^१ वि॰ [सं॰] भयंकर । भयानक । डरावना । विकराल ।

२. सघन । घना । दुर्गम । जैसे—घोर वन ।

३. कठिन । कडा । जैसे—घोर गर्जन, घोर शब्द ।

४. गहरा । गाढा । जैसे—घोर निद्रा ।

५. बुरा । अति बुरा । जैसे,—घोर कर्म, घोर पाप ।

६. बहुत अधिक । बहुत ज्यादा । बहुत भारी । उ॰—ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती हैं ।—भूषण (शब्द॰) ।

घोर ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. शिव का एक नाम ।

२. विष (को॰ ) ।

३. भय । डर (को॰) ।

४. पूज्य भाव (को॰) ।

५. जाफरान (को॰) ।

६. स्कंद के पारिषदगण की उपाधि । उ॰—स्कंद के परिषदगण घोर कहे कए हैं । प्रा॰ भा॰ प्र॰ पृ॰ १०८ ।

घोर ^३ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ धुर] शब्द । गर्जन । ध्वनि । आवाज । उ॰—(क) कहि काकी मन रहत श्रवण सुनि सरस मधुर मुरली की घोर ।—सूर (शब्द॰) । (ख) घिर कर तेरे चारों ओर, करते हैं घन क्या ही घोर ।—साकेत, पृ॰ २५५ ।

घोर ^४पु † संज्ञा पुं॰ [हिं॰ घोडा] दे॰ 'घोडा' ।उ॰—(क) चोर मोर घोर पानी पीयें बडे भोर ।—(कहा॰) । (ख) हस्ति घोर और कापर सबहिं दीन्ह नव साज ।—जायसी ग्रं॰ पृ॰ १४६ ।

घोर ^५पु संज्ञा पुं॰ [फा॰ गोर] कब्र । समाधि । उ॰—परयौं हुसेन सुपाच सुनि चिंतिय चित्त इमांन । सजौं घोर हुस्सेन सथ करौं प्रवंस अपांन ।—पृ॰ रा॰ ९ ।२०८ ।

घोर ^६ † संज्ञा पुं॰ [हिं॰ ] दे॰ 'घोल' ।