प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गौड़ संज्ञा पुं॰ [सं॰ गौड़] वंग देश का एक प्राचीन विभाग । जो किसी की मत से मध्य बंगाल से उड़ीसा की उत्तरी सीमा तक और किसी के मत से वर्तमान बर्दवान के आस पास था । विशेष—कूर्मपुराण और लिंग पुराण से जाना जाता है कि वर्तमान गौंड़ा का आसपास का एक प्रदेश, जिसकी राजधानी श्रावस्ती थी, गौड़ प्रदेश कहलाता था । हितोपदेश में कौशांबी को भी इसी गौड़ प्रदेश के अंतर्गत लिखा है । दसवीं और ग्यारहवीं सदी के चेदि राजाओं के ताम्रपत्रों और शिला- लेखों से पता लगता है कि वर्तमान गोंड़वाना के पास का देश भी गौड़ ही कहलाता था । राजतरंगिणी में 'पंचगौड़' शब्द आया है जिससे जान पड़ता है कि किसी समय पाँच गौड़ देश थे । स्कदपुराण के सह्याद्रि खंड़ में से जिन जिन स्थानों के ब्राम्हणों को पंचगौड़ के अंतर्गत लिखा है, वे ऊपर के बतलाए हुए स्थानों से भिन्न है ।

२. स्कंदपुराण के सह्याद्रि खंड़ के अनुसार ब्राम्हणों की एककोटि जिसमें सारस्वत, कान्यकुब्ज, उत्कल, मैथिल और गौड़ संमि- लित हैं ।

३. ब्राम्हणों की एकजाति जो पश्चिमी उत्तरप्रदेश, दिल्ली के आसपास तथा राजपूताने में पाई जाती है ।

४. गौड़ देश का निवासी ।

५. ३६ प्रकार के राजपूतों में से एक जो उत्तर पश्चिम भारत में अधिकता से पाए जाते हैं । विशेष—टाड़ साहब का मत है कि बंगाल (गौड़) के राजा इसी कोटि के राजपूत थे ।

३. कायस्थों का एक भेद ।

७. संपूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं । विशेष— यह श्रीराग का पुत्र माना जाता है और इसके गाने का समय तीसरा पहर और संध्या है । इसके कान्हड़ा, गौड़, केदार गौड़, नारायण गौड़, रीति गौड़ आदि अनेक भेद हैं ।