प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गौं संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ गम, प्रा॰ गँव]

१. प्रयोजन सिद्ध होने का स्थान या अवसर । सुयोग । मौका । घात । दाँव । उ॰— मनहुँ इंदु बिंब मध्य, कंज मीन खंजन लखि, मधुप मकर, कीर आएतकि तकि निज गौंहैं ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—ताकना ।—देखना । यौ॰—गौं घात = उपयुक्त अवसर या स्थिति । मौका ।

२. प्रयोजन । मतलब । गरज । अर्थ । उ॰—यह स्थिति । मौका । पहिले कहि राकी असित न अपने होहीं । सूर काटि जो माथो दीजै चलत आपनो गौंही ।—सूर (शब्द॰) । यौ॰—गौं का = (१) मतलब का । काम का । प्रयोजनीय (वस्तु) । जैसे,—बाजार जाते हो; कौई गौं की चीज मिले तो लेते आना । (२) स्वार्थी । मतलबी । खुदगरज (व्यक्ति) । गौं का यार = कोवल अपना मतलब गाँठने के लिये साथ में रहनेवाला । मतलबी । स्वार्थी । मुहा॰—गौं गाँठना = अपना मतलब निकालना । स्वार्थ साधन करना । कान निकालना । गौं निकलना = काम निकलना । प्रयोजन सिद्ध होना । स्वार्थ साधन होना । उ॰—अब तो गौं निकल गई; वे हमसे क्यों बोलेंगे ।गौं निकलना = काम निकलना । प्रयोजन सिद्ध करना । स्वार्थ साधन करना । मतलब पूरा करना । गौं पड़ना = काम पड़ना । गरज होना । दरकार होना । आवाश्यकता होना । जैसे,—हमें ऐसी क्या गौं पड़ी है जो हम उनके यहाँ जायँ । वि॰ दे॰ 'गवँ' ।

३. ढब । चाल । दंग । उ॰—कल कुंड़ली चौतनी चारु अति चलत मत्त गज गौं हैं ।—तुलसी (शब्द॰) ।