प्रकाशितकोशों से अर्थ

सम्पादन

शब्दसागर

सम्पादन

गोरोचन संज्ञा पुं॰ [सं॰] पीले रंग का एक प्रकार का सुगंधद्रव्य जो गौ के हृदय के पास पित्त में से निकलता है । उ॰—(क) तिलक भाल पर परम मनोहर गोरोचन को दीनों ।—सूर (शब्द॰) । (ख) चुपरि उबटि अन्हवाई कै नयन आजे रचि रचि तिलक गोरोचन को कियो है ।—तुलसी (शब्द॰) । विशेष—यह अष्टगंध के अतर्गत है और बहुत पवित्र माना जाता है । कभी कभी यह लड़कों की घोंटी में भी पड़ता है और इसका तिलक लगाया जाता है । तांत्रिक इसे मंगलजनक, कांतिदायक, दरिद्रतानाशक और वशीकरण करनेवाला मानते हैं । वैद्यक में इसे शीतल, कडुआ और विष, उन्माद, गर्भस्रव, नेत्ररोग, कृमि, कुष्ठ और रक्तविकार को दूर करनेवाला माना गया है । कुछ लोगों का विश्वास है कि यह गौ के मस्तक का पित्त है; अथवा गौ में इसे उत्पन्न करने के लिये उसको बहुत दिनों तक केवल आम की पत्तियाँ खिलाकर रखते हैं । जिससे उसको बहुत कष्ट होता है; पर ये बातें ठीक नहीं हैं ।