प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गोद ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ क्रोड]

१. वह स्थान जो वक्षस्थल के पास एक या दोनों हाथों का घेरा बनाने से बनता है और जिसमें प्रायः बालकों को लेते हैं । उत्संग । कोरा । ओली । उ॰—व्यापक ब्रह्म निरंजन निर्गुन बिगत विनोद । सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या की गोद ।—तुलसी (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—उठाना ।—लेना । मुहा॰—गोद का = (१) छोटा बालक । बच्चा । (२) बहुत समीप का । पास का । जैसे—गोद की चीज छोड़कर इतनी दूर जाना ठीक नहीं । गोद बैठना = दत्तक बनाना । गोद लेना = दत्तक बनाना । गोद देना = अपने लड़के को दूसरे को दत्तक बनाने के लिये देना । यो॰—गोदभरी = बाल बच्चोंवाली स्त्री । गोद में = पास में । अत्यंत समीप । जैसे,—गोद में लड़का शहर में ढिंढोरा ।

२. स्त्रियों की साड़ी का वह भाग जो अंचल के पास रहता है । अंचल । उ॰—शवरी कटुक बेर तजि मीठे भावि गोद भर लाई । जूठे की कछु शंक न मानी भक्ष किए सत भाई ।—सूर (शब्द॰) । क्रि॰ प्र॰—पसारना ।— - भरना । मुहा॰—गोद पसारकर विनती करना या माँगना = अत्यंत अधीरता से माँगना या प्रार्थना करना । उ॰—इह कन्या मैं स्याम को माँगौं गोद पसारि ।—नंद ग्रं॰ पृ॰ १९४ । गोद भरना = (१) विवाह आदि शुभ अवसरों पर अथवा किसी के आने जाने के समय सौभाग्यवती स्त्री के अंचरे में नारियल आदि पदार्थ देना जो शुभ समझा जाता है । (२) संतान होना । औलाद होना ।

गोद ^२ संज्ञा पुं॰ [सं॰] मस्तिक । दिमाग [को॰] ।