प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गोखरू संज्ञा पुं॰ [सं॰ गोखुर]

१. एक प्रकार का क्षुप । विशेष—इसमें चने के आकार के कड़े और कँटीले फल लगते हैं । ये फल ओषिधि के काम में आते हैं और वैद्यक में इन्हें शीतल, मधुर, पुष्ट, रसायन, दीपन और काश, वायु, अर्श और ब्रणनाशक कहा है । यह फल बड़ा और छोटा दो प्रकार का होता है । कहीं कहीं गरीब लोग इसके बीजों का आटा बनाकर खाते हैं । पर्या॰—त्रिकंटक । गोकटंक । त्रिपुट । कंटक फल । स्नादुकंटक । क्षुरक । वनश्रृंगाटक । श्वदंष्ट्रका । भक्ष्यकंटक । क्षुरंग ।

२. गोखरू के फल के आकार के धातु के बने हुए गोल कँटीले टुकड़े । विशेष—ये प्राय; मस्त हथियों को पकड़ने के लिये उनके रास्ते में फैला दिए जाते हैं और जिनके पैरों में गड़ने के कारण हाथी चल नहीं सकते । शत्रुसेना की गति रोकने के लिये भी पहले ऐसे ही काँटे बिछाए जाते थे ।

३. गोटे और बादले के तारों से गूँथकर बनाया हुआ एक प्रकार का साज जो स्त्रियो और बालकों के कपड़ों में टाँका जाता है ।

४. कड़े के आकार का एक प्रकार का आभूषण जो हाथों और पैरों में पहना जाता है ।

५. तलवे, हथेली आदि में पड़ा हुआ वह घट्ठा जो काँटा गड़ने के कारण होता है ।