प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गैस संज्ञा स्त्री॰ [अं॰]

१. प्रकृति में वायु के समान एक अत्यंत अगोचर और सूक्ष्म द्रव्य जिसके भिन्न भिन्न रूपों के संयोग से जल, वायु आदि पदार्थ बनते हैं । वह द्रव्य जिसके अणु अत्यंत तरल या चंचल हों और जो अत्यंत प्रसरणशील हो । विशेष— गैसों के अणु निरंतर गति में रहते हैं और वे एक सीध में चलकर एक दूसरे से टकराते हैं तथा जिस बरतन में गैस रहती है उसकी दीवारों पर दबाव डालते हैं । अधिक दबाव ओर सरदी से गैस द्रवीभूत हो सकती है; पर भिन्न भिन्न गैसों के लिये भिन्न भिन्न मात्रा के दबाव और सरदी की आवश्यकता होती है । गैस की बड़ी भारी विशेषता यह है कि यह जितना खाली स्थान पाती है उतने भर में फैलकर भरना चाहती है, अर्थात् उसका कोई परिमित तल या बिस्तार नहीं होता । बोतल में यदि हम बोतल भर पानी न डालेंगे तो पानी बोतल में कुछ दूर तक ही रहेगा । यदि उसी बोतल में गैस भरेंगे तो वह सारी बोतल में भर जायगी ।

२. एक प्रकार की तीव्र और गंधयुक्त वायु जो कोयले की खानों आदि से निकलती है ।

३. बहुत सी भिन्न भिन्न गैसों का ऐसा मिश्रण जिससे गरमी पहुँचाने या रोशनी करने का काम लिया जाता है ।

४. दे॰ 'गैसबत्ती' ।