गुलर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
सम्पादनशब्दसागर
सम्पादनगुलर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰ उदुंबर ?] वट वर्ग अर्थात् पीपल और बरगद की जाति का एक बड़ा पेड़ जिसकी पेड़ी । ड़ाल आदि से एक प्रकार का दूध निकलता है । विशेष—इसके पत्ते महुवे के पत्ते के आकार के पर उससे छोटे होते हैं । पेड़ी और ड़ाल की छाल का रंग ऊपर कुछ सफेदी लिए और भीतर ललाई लिए होता है । अश्वत्थवर्ग के और पेड़ों के समान इसके सूक्ष्म फूल भी अंतर्मुखअर्थात् एक कोश के भीतर बंद रहते हैं । पुं॰ पुष्प और स्त्री॰ पुष्प के अलग अलग कोश होते हैं । गर्भाधान कीड़ों की सहायता से होता है । पुं॰ केसर की वृद्धि के साथ साथ एक प्रकार के कीड़ों की उत्पत्ति होती है जो पुं॰ पराग को गर्भकेसर में ले जाते है । यह नहीं जाना जाता कि कीड़े किस प्रकार पराग ले जाते हैं । पर यह निश्चय है किले अवश्य जाते हैं और उसी से गर्भाधान होता है तथा कोश बढ़कर फल के रूप में होते हैं । यह मांसल और मुलायम होता है । इसके ऊपर कड़ा छिलका नहीं होता, बहुत महीन झिल्ली होती है । फल को तोड़ने से उसके भीतर गर्भकेसर और महीन महीन बीज दिखाई पड़ते हैं तथा भुनगे या कीड़े भी मिलते हैं । गूलर की छाया बहुत शीतल, मानी जाती है । वैद्यक में गुलर शीतल, घाव को भरनेवाला, कफ, पित्त और अतीसार को दूर करनेवाला माना है । इसकी छाल स्त्री गर्भ को हितकारी, दुग्धवर्धक और व्रणनाशक मानी जाती है । अंजीर आदि वट जाति के और फलों के समान इसका फल भी रेचक होता है । पर्या॰—उदुंबर । असुमा । क्षीरी । खस्पत्रिका । कुष्ठघ्नी । राजिका । फल्गुवाटिका । अजीजा । फल्गुनी । मलयु । मुहा॰—गूलर का कीड़ा = एक ही स्थान पर पड़ा रहनेवाला । अनुभव प्राप्त करने के लिये घर या देश से बाहर न निकलनेवाला । इधर उधर कुछ खबर न रखनेवाला । कूपमंड़ूक । गूलर का फूल = वह जो कभी देखने में न आवे । दुर्लभ व्यक्ति या वस्तु । गुलर का होना = कभी देखने में न आना । दुर्लभ होना । गुलर का पेट फड़वाना = गुप्त या दबी दबा ई बात प्रकट कराना । भंडा फोड़वाना । भेद खुलवाना । गूलर फोड़कर जीव उडा़ना = गुप्त भेद प्रकट करना ।