प्रकाशितकोशों से अर्थ

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शब्दसागर

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गम ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]

१. राह । मार्ग । रास्ता ।

२. गमन । प्रयाण ।

३. मैथुन । सहवास ।

४. सड़क । पथ (को॰) ।

५. शत्रु पर अभियान । कूच (को॰) ।

६. अविचारिता । विचारशून्यता (को॰) ।

७. ऊपरीपन । अटकलपच्चू निरीक्षण (को॰) ।

८. पासे का खेल [को॰] ।

गम ^२ संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ गम्य] (किसी वस्तु या विषय में) प्रवेश । पहुँच । गुजर । पैठ । जैसे—जिस विषय में तुम्हारी गम नहीं है, उसमें न बोलो । उ॰—(क) चींटी जहाँ न चढ़ि सकै राई नहिं ठहराह । आवागमन कि गम नहीं सकलो जग जाइ ।——कबीर (शब्द॰) (ख) असुरपति अति ही गर्व धरयो । तिहूँ भुवन भरि गम है मेरी मो सन्मुख को आड़ ?— सूर (शब्द॰) । मुहा॰—गम करना † = चट कर जाना । पेट में ड़ाल लेना । खालेना । उ॰—चरि वृक्ष छह शाखा वाके पत्र अठारह भाई । एतिक लै गैया गम कीन्हों गैया अति हरहाई ।—कबीर (शब्द॰) ।

गम ^३ संज्ञा पुं॰ [अ॰ ग़म]

१. दुःख । शोक । रंज । मुहा॰—गम खाना = क्षमा करना । जाने देना । ध्यान न देना । उ॰—तस्कर के कुत धर्म, दुष्ट के कुत गम खाना ।—रघुनाथ (शब्द॰) । गम गलत करना = दुःख भुलाना । शोक दूर करने का प्रयत्न करना ।

२. चिंता । फिक्र । ध्यान । उ॰—सरस सर जिन बेधिया सर बिनु गम कछु नाहिं । लागि चोट जो शब्द की करक करेजे माहि ।—कबीर (शब्द॰) ।